भारत और पाकिस्तान के रिश्ते आज़ादी के बाद से ही तनावपूर्ण रहे हैं। दोनों देशों के बीच कई बार जंग हुई या जंग के हालात बने। हाल ही में 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने फिर से भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव की लकीर खींच दी है। इस हमले में करीब 26 भारतीयों की मौत हुई थी। इसके बाद भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए 7 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नामक सैन्य कार्रवाई की, जिसमें पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया गया।
तुर्की का पाकिस्तान के प्रति साफ रुख और भारत में बायकॉट
22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले के बाद तुर्की ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया। तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैय्यब एर्दोगन ने पाकिस्तान के लोगों को ‘भाई’ बताते हुए एक ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान और भारत के बीच बढ़ते तनाव के कारण मारे गए लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त की। एर्दोगन ने लिखा, “हम चिंतित हैं कि तनाव के बीच कई नागरिक मारे जाएंगे। मेरी दुआ हमारे भाइयों के लिए है जो इन हमलों में अपनी जान गंवा चुके हैं।”
एर्दोगन ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ से भी फोन पर बातचीत की और समर्थन जताया। इसके बाद तुर्की एयरफोर्स का एक विमान भी पाकिस्तान में उतरा, जिसे आधिकारिक तौर पर ईंधन भरने के लिए बताया गया, लेकिन इससे यह संदेश गया कि तुर्की पाकिस्तान का खुलकर समर्थन कर रहा है।
तुर्की और पाकिस्तान के बीच दोस्ती की भावना का प्रदर्शन करते हुए एर्दोगन ने 14 मई को एक और पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने लिखा, “पाकिस्तान-तुर्की दोस्ती जिंदाबाद।” इस बयान से भारत में तुर्की के खिलाफ विरोध की लहर तेज हो गई।
भारत का ‘ऑपरेशन दोस्त’ और तुर्की के साथ पहले के संबंध
हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब तुर्की ने पाकिस्तान का समर्थन किया हो। लेकिन यह भी सच है कि भारत ने तुर्की के बुरे समय में मदद भी की है। 2023 में तुर्की और सीरिया में आए भयानक भूकंप के बाद भारत ने राहत कार्यों के तहत ‘ऑपरेशन दोस्त’ चलाया। इसके तहत भारत ने तुर्की में राहत सामग्री और बचाव दल भेजे। उस वक्त तुर्की के तत्कालीन राजदूत फिरात सुनेल ने इस कदम को दोनों देशों के बीच सच्चे दोस्ताना रिश्तों का प्रमाण बताया था।
परंतु, इसके बाद भी तुर्की ने कई मौकों पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान का समर्थन किया। 2014 में जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने और एर्दोगन तुर्की के राष्ट्रपति, तब से दोनों देशों के रिश्ते उतने सहज नहीं रहे।
तुर्की ने बदला रवैया
2017 में एर्दोगन ने भारत का दौरा किया, लेकिन उसके बाद भारत-तुर्की संबंधों में तनाव आ गया। खासकर 2019 में प्रधानमंत्री मोदी के तुर्की दौरे के दौरान, जब एर्दोगन ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने पर विवादित बयान दिया। इस बयान के बाद मोदी सरकार ने दौरा स्थगित कर दिया।
इससे साफ है कि तुर्की की विदेश नीति में पाकिस्तान के साथ दोस्ताना रिश्ता भारतीय हितों के विरुद्ध जा रहा है। इस रवैये के कारण भारत में तुर्की के खिलाफ विरोध और बायकॉट तेज हो गया है।
भारत में तुर्की के सामान और सेवाओं का बायकॉट
तुर्की के पाकिस्तान के प्रति समर्थन के बाद भारत में तुर्की के खिलाफ आंदोलन तेज हो गया। सबसे पहले पुणे के व्यापारियों ने तुर्की से आने वाले सेबों पर प्रतिबंध लगाया। इसके बाद जयपुर के मार्बल व्यापारियों ने तुर्की के मार्बल का बहिष्कार शुरू किया। विरोध आंदोलन बड़े विश्वविद्यालयों तक भी पहुंचा। जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), IIT रुड़की, IIT बॉम्बे जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों ने तुर्की के उत्पादों और सेवाओं का बायकॉट किया। कई विश्वविद्यालयों ने तुर्की के साथ हुए समझौतों (MoUs) को भी तोड़ने की घोषणा की।
तुर्की की कंपनियां भी प्रभावित
तुर्की की एक प्रमुख एयरपोर्ट सेवा कंपनी ‘सेलेबी’ भी भारत में विरोध का सामना कर रही है। कई जगहों पर इस कंपनी के खिलाफ प्रदर्शन हुए, जबकि कंपनी ने खुद को निर्दोष बताया। इसके अलावा भारत में तुर्की जाने वाले यात्रियों की संख्या में 60% तक गिरावट आई है। तुर्की से आने वाले चॉकलेट, कॉस्मेटिक्स और अन्य वस्तुओं का भी बायकॉट किया जा रहा है।
भविष्य में क्या हो सकता है?
तुर्की के स्पष्ट पाकिस्तान समर्थन के कारण भारत में तुर्की विरोधी भावना और बढ़ सकती है। यदि तुर्की ने अपना रुख नहीं बदला, तो भारत-तुर्की संबंध और अधिक तनावपूर्ण हो सकते हैं। इस बीच, भारत के व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध भी प्रभावित हो सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत और पाकिस्तान के बीच पुराने तनाव के बीच तुर्की का पाकिस्तान के प्रति खड़ा होना भारत के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। जबकि भारत ने तुर्की के लिए ‘ऑपरेशन दोस्त’ चलाकर दोस्ताना पहल की थी, तुर्की के रुख ने भारतीय जनता में असंतोष बढ़ाया है। इस परिस्थिति में तुर्की के खिलाफ भारत में व्यापक बायकॉट का माहौल बन रहा है, जो दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्तों को प्रभावित कर सकता है।