तेलंगाना के भाजपा विधायक टी. राजा सिंह एक बार फिर सुर्खियों में हैं। सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहे एक वीडियो में उन्हें पुलिस द्वारा हिरासत में लेते हुए देखा जा सकता है। इस वीडियो के साथ यह दावा किया जा रहा है कि राजा सिंह को हाल ही में हैदराबाद में एक कथित अवैध मस्जिद निर्माण का विरोध करने के चलते गिरफ्तार किया गया। हालांकि, जब इस वायरल दावे की पीटीआई फैक्ट चेक और अन्य स्वतंत्र माध्यमों से जांच की गई, तो सच्चाई कुछ और ही निकली।
यह वीडियो वास्तव में वर्ष 2019 का है, जिसे अब गलत संदर्भ में पेश किया जा रहा है। आइए विस्तार से जानते हैं इस पूरे मामले की तह तक:
वायरल वीडियो में क्या है?
वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि टी. राजा सिंह को पुलिस के जवान कुछ लोगों की भीड़ के बीच से ले जा रहे हैं। वीडियो के साथ सोशल मीडिया पर यह दावा किया जा रहा है:
"हैदराबाद - बनाई जा रही गैरकानूनी मस्जिद का विरोध करने पर एकलौते हिन्दू विधायक राजा सिंह पर अत्याचार, पुलिस ने बेरहमी से गिरफ्तार किया।"
फैक्ट चेक: सच्चाई क्या है?
सोशल मीडिया एक्स (पूर्व ट्विटर) पर राजा सिंह के पुराने पोस्ट के जरिए यह स्पष्ट हुआ कि यह वीडियो हाल का नहीं, बल्कि 5 मई 2019 का है।
फैक्ट चेक की प्रक्रिया:
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की-फ्रेम रिवर्स इमेज सर्च:
वायरल वीडियो के फ्रेम्स को रिवर्स सर्च किया गया और परिणामस्वरूप यह वीडियो राजा सिंह के ही आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर 5 मई 2019 को पोस्ट किया हुआ पाया गया।
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राजा सिंह का बयान:
पीटीआई द्वारा संपर्क किए जाने पर विधायक ने कहा –
"यह वीडियो 2019 का है। उस समय हैदराबाद के अंबरपेट में एक सरकारी ज़मीन पर अवैध मस्जिद निर्माण का विरोध किया गया था। मैंने स्थानीय लोगों और हिंदू संगठनों के साथ मिलकर विरोध जताया था। उसी वक्त पुलिस ने मुझे हिरासत में लिया था। अब उसी वीडियो को हाल का बताकर भ्रामक तरीके से प्रचारित किया जा रहा है।"
वीडियो का मकसद क्या था?
2019 की घटना के समय राजा सिंह का मकसद था कि एक कथित अवैध धार्मिक ढांचे के निर्माण को रोका जाए। उन्होंने कहा था कि सरकारी ज़मीन पर मस्जिद निर्माण किया जा रहा था, जिसे वो बर्दाश्त नहीं करेंगे।
हालांकि, पुलिस ने शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए उन्हें हिरासत में लिया था और बाद में रिहा कर दिया गया था। यह कोई गंभीर अपराध या गिरफ्तारी नहीं थी, बल्कि एहतियातन कार्रवाई थी।
वर्तमान दावे क्यों भ्रामक हैं?
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वीडियो पुराना होने के बावजूद इसे 2025 की घटना बताकर सोशल मीडिया पर शेयर किया गया।
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कुछ यूजर्स ने इसे मुस्लिम विरोधी भावना भड़काने और राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देने के लिए साझा किया।
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ऐसे झूठे दावे समाज में सांप्रदायिक तनाव बढ़ा सकते हैं और इससे बचना जरूरी है।