रांची न्यूज डेस्क: भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) रांची ने मंगलवार को आदिवासी उद्यमिता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 'जनजातीय उद्यमिता सम्मेलन-2025' का आयोजन किया। इस सम्मेलन में देशभर के विभिन्न हिस्सों से आदिवासी उद्यमी शामिल हुए, जिन्होंने अपने अनुभव और चुनौतियों को साझा किया। सम्मेलन में आदिवासी उद्यमिता की मौजूदा स्थिति, संभावनाओं और चुनौतियों पर चर्चा की गई। इसके साथ ही, उद्यमियों को उद्योग जगत की स्थिति, सरकारी योजनाओं और गैर-सरकारी संगठनों के सहयोग के माध्यम से अवसरों का लाभ उठाने के तरीकों के बारे में जानकारी दी गई। इस मौके पर उपभोक्ता निवेश विशेषज्ञ और सिंगुलैरिटी के पार्टनर अवनीश आनंद और ग्राम मूलिगई कंपनी लिमिटेड के निदेशक उत्कर्ष घाते ने मुख्य अतिथि के रूप में अपने विचार रखे।
आईआईएम रांची की डीन (अकादमिक) प्रो. तनुश्री दत्ता ने उद्घाटन सत्र में सम्मेलन के उद्देश्यों पर बात करते हुए कहा कि संस्थान सिर्फ शैक्षणिक उत्कृष्टता तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए सामाजिक दायित्वों को निभा रहा है। उन्होंने जोर दिया कि आदिवासी उद्यमिता में नवाचार और पारंपरिक व्यवस्थाओं के बीच संतुलन से नए उद्यम खड़े किए जा सकते हैं। उन्होंने कहा कि समुदाय आधारित समस्या समाधान की रणनीति और नीतिगत सहयोग आदिवासी उद्यमों के विकास में सहायक सिद्ध होंगे।
मुख्य वक्ता अवनीश आनंद और उत्कर्ष घाते ने उपभोक्ता निवेश, सामाजिक उद्यमिता और आदिवासी समाज की पारंपरिक रोजगार व्यवस्था को एक सतत आजीविका मॉडल के रूप में विकसित करने की प्रक्रिया साझा की। उन्होंने सामूहिक प्रयास से तैयार किए गए उत्पादों को बाजार तक पहुंचाने, आपूर्ति और मांग की शृंखला को मजबूत करने और नवाचार के माध्यम से व्यवसाय को दीर्घकालिक बनाने पर अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि बाजार की आवश्यकता को समझकर ही टिकाऊ व्यवसाय मॉडल खड़ा किया जा सकता है।
सम्मेलन में आदिवासी उद्यमिता पर एक परिचर्चा सत्र भी आयोजित किया गया, जिसमें अहुति खलखो, डोमनचंद्र टुडू, पवन कुमार, मनीषा उरांव, विनीता कुमारी, भगवती देवी, मीनाक्षी ओराकश और प्रदीप कुमार महतो ने वक्ता के रूप में अपने अनुभव साझा किए। इस सत्र की अध्यक्षता आईआईएम रांची की मार्केटिंग संकाय की सहायक प्राध्यापक प्रिया प्रेमी और वित्त संकाय के सहायक प्राध्यापक रवीश कृष्णनकुट्टी ने की। वक्ताओं ने व्यापार के स्थायी मॉडल, वित्तीय जोखिम और लाभ, सरकारी योजनाओं के सहयोग और तकनीकी सहायता जैसे मुद्दों पर चर्चा की। समापन सत्र में संस्थान के विद्यार्थियों ने आदिवासी उद्यमियों के सामने अपनी जिज्ञासाएं रखीं और उनके सवालों के समाधान पर विस्तार से चर्चा हुई।