मुंबई, 23 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि किसी परीक्षा में मिले अंक और रैंक यह तय नहीं करते कि छात्र भविष्य में कितना सफल होगा। असली सफलता मेहनत, लगन और समर्पण से मिलती है। वे गोवा के वीएम सालगांवकर लॉ कॉलेज के स्वर्ण जयंती समापन समारोह में बोल रहे थे। अपने छात्र जीवन का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि वे कॉलेज कम जाते थे और उनकी उपस्थिति दोस्त लगाते थे, फिर भी पुराने प्रश्नपत्र पढ़कर वे मेरिट लिस्ट में तीसरे नंबर पर आए। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि उनके बैच का टॉपर आपराधिक मामलों का वकील बना, दूसरे स्थान पर आने वाला साथी हाईकोर्ट जज बना और वे खुद भारत के मुख्य न्यायाधीश बने। उन्होंने कहा कि यह साफ दिखाता है कि केवल रैंक से सफलता तय नहीं होती।
जस्टिस गवई ने कहा कि देश में कानूनी शिक्षा को मजबूत करना बेहद जरूरी है और सुधार की प्रक्रिया केवल नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। उनका मानना है कि CLAT और NLU को लेकर जिस तरह का ध्यान दिया जाता है, वह भारत की कानूनी शिक्षा का सिर्फ छोटा हिस्सा है। उन्होंने इस मौके पर स्कॉलरशिप और समाज से सहयोग की भी अहमियत बताई। उनका कहना था कि जैसे विदेशों में छात्रवृत्ति के सहारे आदिवासी छात्र पढ़ाई कर पाते हैं, वैसे ही भारत में भी सफल वकीलों को चाहिए कि वे अपनी उपलब्धियों का लाभ समाज को लौटाते हुए नए और जरूरतमंद छात्रों को आगे बढ़ने में मदद करें। CJI गवई ने मूट कोर्ट के अनुभवों का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जब वे वकील थे और बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट के जज बने, तब अक्सर मूट कोर्ट में शामिल होते थे। कई बार छात्रों की दलीलें सुनकर उन्हें लगता था कि हाईकोर्ट के वकीलों को भी वहां बैठकर सीखना चाहिए कि अदालत में किस तरह से तार्किक तरीके से दलीलें पेश की जाती हैं।